मंडी डबवाली डबवाली अग्निकांड: 25 साल बाद आज भी सिहर जाता है हर कोई, वो मनहूस घटना जिसने सिर्फ सात मिनट में शहर की 442 जिंदगियों को लील लिया By Gurvinder Pannu Posted on December 22, 2020 12 second read 0 0 1,128 Facebook WhatsApp Twitter Email LinkedIn Print हेमराज बिरट, तेज़ हरियाणा अपडेट: ————————————- कुछ शहर महज एक बेहद हौलनाक हादसे की वजह से रहती सभ्यता तक ‘मौत का शहर’ कहलाते हैं और कभी न भरने वाले जख्म उसके कोने-अंतरों में स्थायी जगह बनाकर सदा रिसते रहते हैं। हरियाणा, पंजाब और राजस्थान की सीमाओं के ऐन बीच पड़ने वाला जिला सिरसा का डबवाली शहर ऐसा ही है। आज से ठीक 25 साल पहले यहां ऐसा भयावह अग्निकांड हुआ था, जिसकी दूसरी कोई मिसाल देश-दुनिया में नहीं मिलती। इस अग्निकांड में महज सात मिनट में 442 लोग जिंदा झुलस मरे थे। इनमें 258 बच्चे और 143 महिलाएं थी। मृतकों की कुल तादाद 442 थी और घायलों की 150 तथा कई परिवार एक साथ जिंदगी से सदा के लिए नाता तोड़ गए थे। मौत की यह बरसात 23 दिसंबर 1995 की दोपहर एक बज कर 40 मिनट पर शुरू हुई थी और सात मिनट में इतनी जिंदगियां स्वाहा करते हुए 1.47 पर बंद हुई थी। जिस शहर की एक फीसदी आबादी सिर्फ सात मिनट में तबाह हो गई हो उसकी लगभग हर गली के किसी न किसी घर में इसके निशान तो होंगे ही। जिनका अपना या दूर का कोई मरा या जो गंभीर जख्मी होकर जिंदा होने के नाम पर जिंदा हैं, वे उस अग्निदिन के बारे में बात करने से परहेज करते हैं। उस खौफनाक हादसे को याद करते ही वे मानसिक तौर पर असंतुलित हो जाते हैं और फिर संभलने में काफी समय लगता है। 23 दिसंबर 1995 की त्रासदी ने बच गये लोगों को कदम-कदम पर विकलांग और कुरूप होने का अमानवीय एहसास कराया है. हमारी मुलाकात एक ऐसी महिला से हुई जिसका चेहरा लगभग पूरी तरह जल गया था और प्लास्टिक सर्जरी उसे सामान्य की सीमा तक भी नहीं ला सकी थी. उन्होंने बताया कि बसों में सफर करते हैं तो जले चेहरों के कारण दूसरी सवारी पास तक नहीं बैठती या नहीं बैठने देती. घृणा का भाव आहत करता है. यह नंगा सामाजिक सच है जिसकी क्रूरता अकथनीय है. डबवाली अग्निकांड ने बड़े पैमाने पर लोगों को सदा के लिए मनोरोगी बना दिया है. किसी ने अपनी संतान खोई है तो कोई सात मिनट की उस आग में अनाथ हो गया. किसी की पत्नी चली गई तो किसी का पति. वे सात मिनट सैकड़ों लोगों के दिलों-दिमाग में 25 साल के बाद आज भी ठहरे हुए हैं. 442 लोग, जिनमें ज्यादातर मासूम बच्चे और महिलाएं थीं, तो जल मरे लेकिन वे सात मिनट हैं कि भस्म होने का नाम ही नहीं लेते. डबवाली अग्निकांड राजीव मैरिज पैलेस में हुआ था. 23 दिसंबर 1995 को यहां डीएवी स्कूल का सालाना कार्यक्रम चल रहा था. हॉल बच्चों, अभिभावकों और मेहमानों से खचाखच भरा था. अचानक वहां आग लग गई और देखते ही देखते 400 लोग तिल-तिल झुलसकर राख हो गए. 42 ने अगले दिन दम तोड़ दिया. 150 से ज्यादा घायल हुए जो आठ बड़े मेडिकल कॉलेजों के लंबे इलाज के बाद भी दो से सौ प्रतिशत तक स्थायी रुप से विकलांग हैं. ये सरकारी आंकड़े हैं. गैरसरकारी अनुमान के अनुसार पीड़ितों की संख्या इससे ज्यादा है. अग्निकांड के बाद जो हुआ उसमें राजीव मैरिज पैलेस और दो बिजलीकर्मियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 304 के तहत चला औपचारिक मुकदमा भी शामिल है. जिंदा बच्चों और लोगों की कब्रगाह मैरिज पैलेस अब एक स्मारक में तब्दील हो गया है. वहां मृतकों की तस्वीरें हैं और एक बड़ा पुस्तकालय. स्कूल ने नई इमारत बना ली, जहां हर साल 23 दिसंबर को हवन की रस्म अदा की जाती है. हालांकि सरकारी तौर पर इस हादसे को शॉट सर्किट से हुआ बताया जाता है. वहीं एक बड़ा सवाल डबवाली अग्निकांड आज भी यह खड़ा करता है कि इससे सबक क्या लिए गए? सो जवाब है कि डबवाली अग्निकांड से किसी ने कोई सबक नहीं लिया. क्या यह हमारे देश में ही है कि मासूम बच्चों, औरतों और बूढ़े-बुजुर्गों की दर्दनाक मौतें हमारे लिए सनसनीखेज खबरें तो होती हैं लेकिन कोई सबक नहीं! नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध की आग में जलने वाले देश को क्या सैकड़ों मासूमों की जान लेने वाली ऐसी आगों के बारे में सोचने की भी फुर्सत है? Facebook WhatsApp Twitter Email LinkedIn Print
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